हिन्दू धर्म के सभी देवी-देवताओं में केवल कृष्ण ही एक ऐसे देवता हैं जिनके अकेले ऐसे और इतने रूप हैं जिनके जीवन के हर पड़ाव के अलग रंग दिखाई देते हैं। कभी नटखट नंदलाला तो कभी गोपियों के कान्हा, तो कभी यशोदा माँ के माखन चोर। कृष्ण भगवान का जीवन ही लीलाओं से भरा पड़ा है।
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इन्ही भगवान श्री कृष्ण के जन्मदिन को हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले और भगवान श्री कृष्ण को अपना आराध्य मानने वाले जन्माष्टमी के रूप में मनाते हैं। इस दिन भगवान श्री कृष्ण की कृपा पाने के लिये भक्तजन उपवास रखते हैं और श्री कृष्ण की पूजा अर्चना करते हैं।
लेकिन क्या आप यह जानते हैं कि कृष्ण जन्माष्टमी को दो दिन, 11 अगस्त (स्मार्त) और 12 अगस्त (वैष्णव) को मनाया जायेगा। अब सवाल यह भी उठता है कि आखिर स्मार्त और वैष्णव क्या हैं? तो आइये इस आर्टिकल के माध्यम से जानने की कोशिश करते हैं कि स्मार्त और वैष्णव कौन होते हैं? दोनों में क्या अंतर है? और साथ ही जानते हैं जन्माष्टमी की पूजन विधि।
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सबसे पहले बात कि, क्यों मनाई जाती है जन्माष्टमी?
जन्माष्टमी, भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव को कहा गया है। हिन्दू धर्म के पौराणिक ग्रंथों के अनुसार भगवान कृष्ण का जन्म भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में मध्यरात्रि के समय हुआ था। ऐसे में माना जाता है कि अगर भाद्रपद मास में आने वाली कृष्ण पक्ष की अष्टमी को यदि रोहिणी नक्षत्र का भी संयोग बन जाये तो इसे बेहद ही भाग्यशाली माना गया है।
जन्माष्टमी 2020
हम आपकी जानकारी के लिए बता दें कि, इस लेख में हम स्मार्त समुदाय द्वारा मनाई जाने वाली जन्माष्टमी के बारे में मुख्य रूप से बात कर रहे हैं। इसलिए यहाँ दिया जा रहा मुहूर्त भी 11 अगस्त को मनाई जाने वाली जन्माष्टमी का है।
जन्माष्टमी 11 अगस्त, 2020, शुभ मुहूर्त
निशिथ पूजा– 00:04 से 00:48
पारण– 11:15 (12 अगस्त) के बाद
रोहिणी समाप्त- रोहिणी नक्षत्र रहित जन्माष्टमी
अष्टमी तिथि आरंभ – 09:06 (11 अगस्त)
अष्टमी तिथि समाप्त – 11:15 (12 अगस्त)
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अब जानते हैं कि स्मार्त समुदाय क्या होता है?
स्मार्त संप्रदाय के मंदिरों में, साधु-संन्यासी, शैव संप्रदाय द्वारा मंगलवार 11 अगस्त को, जबकि वैष्णव संप्रदाय के मंदिरों में बुधवार यानी 12 अगस्त को जन्माष्टमी मनाई जाएगी।
स्मार्त समुदाय में वो लोग आते हैं जो पंचदेवों की पूजा करते हैं। वहीं शैव समुदाय के लोग मुख्य रूप से भगवान शिव की पूजा करते हैं, और अंत में आते हैं वैष्णव समुदाय के लोग, जो मुख्य रूप से भगवान विष्णु की पूजा करते हैं।
स्मार्त सम्प्रदाय में मुख्य रूप से ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य वर्गों के लोग शामिल होते हैं। स्मार्त समुदाय के लोग मुख्य रूप से हिन्दू देवी-देवताओं की भक्ति और प्राचीन सूत्र पाठों में उल्लिखित अनुष्ठान और नियमों का पालन करते हैं। इसके अलावा यहाँ जानने वाली बात यह भी है कि स्मार्त समुदाय के लोग अपने देवता या पूजन-पद्धति के बारे में एकनिष्ठ नहीं हैं।
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स्मार्त नाम संस्कृत शब्द ‘स्मृति’ से बना है। स्मार्त सम्प्रदाय स्मृति साहित्य का अनुसरण करता है। बता दें कि स्मार्त समुदाय के धर्मग्रंथ सभी पुराण, स्मृतियां आदि होते हैं।
नोट: मनु स्मृति सहित समस्त स्मृतियाँ और पुराण, स्मृति ग्रंथ होते हैं। ऐसे में वेदों को छोड़कर जो लोग, इन ग्रंथों के अनुसार अपना जीवन जीते हैं उन्हें स्मार्त समुदाय का माना गया है। स्मार्त समुदाय के लोग विष्णु भगवान में भी आस्था रखते हैं और माँ दुर्गा में भी और वो अन्य देवी-देवताओं की भी पूजा करते हैं।
अब बात करते हैं स्मार्त और वैष्णव समुदाय के बीच के अंतर की
जानकार बताते हैं कि बेशक त्यौहार एक है लेकिन इसे दोनों ही समुदाय काफी अलग-अलग ढंग से मनाते आये हैं। प्राचीन समय में अलग-अलग भगवानों में आस्था रखने वालों को अलग-अलग समुदायों में विभाजित किया जाता है।
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वैदिक शास्त्रों में इस बात का ज़िक्र है कि, जो लोग पंचदेवों अर्थात, ब्रह्मा, विष्णु, महेश, गणेश और उमा में विश्वास रखते हैं, या यूँ कहिये कि उनके उपासक होते हैं उन्हें स्मार्त समुदाय का माना गया है।
वहीं अब अगर बात करें, वैष्णव समुदाय के लोगों कि तो, इस समुदाय में मुख्यतः वो लोग होते हैं तो किसी गुरु या धर्माचार्य से दीक्षा लेते हैं, अपने गले में कंठी या तुलसी की माला धारण करते हैं, या अपने शरीर में तप्त मुद्रा से शंख चक्र का निशान गुदवाते हैं। सरल शब्दों में कहें तो गृहस्थ जीवन से दूर रहने वाले लोग वैष्णव समुदाय के होते हैं।
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पांच समुदायों में हुआ है विभाजन
वेद और पुराणों से अलग-अलग भगवानों में आस्था रखने वालों को अलग-अलग समुदायों में विभाजित किया जाता है और उन्हें पांच तरह के संप्रदायों में विभाजित किया गया है।
- वैष्णव (जो भगवान विष्णु को अपना परमेश्वर मानते हैं)
- शैव (जो भगवान शिव को अपना परमेश्वर मानते हैं)
- शाक्त (जो देवी शक्ति को परमशक्ति मानते हैं)
- स्मार्त (जो भगवान के विभिन्न रूपों को एक समान मानते हैं)
- वैदिक संप्रदाय (जो लोग ब्रह्म को निराकार रूप जानकर उसे ही सर्वोपरि मानते हैं)
जन्माष्टमी पूजन विधि
अब यह पूरी तरह आप पर निर्भर है कि आप किस दिन जन्माष्टमी मनाते हैं।
- जन्माष्टमी वाले दिन सुबह उठकर स्नान आदि करने के बाद भगवान कृष्ण के मंदिर में जायें और वहां उन्हें मोर-पंख अवश्य चढ़ाएं।
- मंदिर नहीं भी जा सकते हैं तो कोई बात नहीं, घर के मन्दिर में ही भगवान कृष्ण को मोर पंख चढ़ाएं।
- भगवान कृष्ण को पीले रंग के वस्त्र से सुसज्जित करें।
- इस दिन की पूजा में ‘कृं कृष्णाय नम:’ इस मन्त्र का 108 बार जप करें।
- इसके बाद दक्षिणावर्ती शंख से भगवान कृष्ण का अभिषेक करें।
- भगवान के समक्ष अपनी मनचाही मनोकामनाएं मांगे।
- भगवान कृष्ण की आरती करें।
- इसके अलावा इस दिन गाय की सेवा करें।
- मुमकिन हो तो इस दिन किसी गौशाला में जाकर धन और हरी घास का दान करें।
जन्माष्टमी का महत्व
इस दिन देश के समस्त मंदिरों का दुल्हन की तरह से श्रृंगार किया जाता है। इसके साथ ही इस दिन श्री कृष्णावतार के उपलक्ष्य में विभिन्न झाकियाँ सजाई जाती हैं। इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण का श्रृंगार करके उनके लिए एक झूला सजाया जाता है जिसमें उन्हें झूला झुलाया जाता है।
इस दिन व्रत करने का भी विधान माना गया है। इस दिन का व्रत रात के बारह बजे तक (कृष्ण के जन्म समय तक) रखा जाता है। इसके बाद जैसे ही बारह बजते हैं शंख तथा घंटों की आवाज से श्रीकृष्ण के जन्म की खबर चारों दिशाओं में गूँज उठती है। इसके बाद लोग भगवान कृष्ण की आरती करते हैं और फिर सभी लोगों को प्रसाद दिया जाता है।
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अगस्त महीने का अगला व्रत-त्यौहार है 12 तारीख़ को मनाई जाने वाली जन्माष्टमी, जिसे बुधवार के दिन मनाया जायेगा। जन्माष्टमी के बारे में अधिक जानने के लिए हमारे साथ बने रहे|
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