कुंडली में संतान योग, जानें हर बात

कुंडली में संतान योग एक ऐसा योग है जो ग्रहों द्वारा निर्मित होता है और प्रत्येक व्यक्ति की इच्छा होती है कि उसके जीवन में उसको एक अच्छी और संस्कारी संतान की प्राप्ति हो। कुछ लोगों की तो यह इच्छा समय रहते पूरी हो जाती है और कुछ को पूरे जीवन इंतजार करना पड़ता है तथा कुछ लोगों को विलंब से संतान की प्राप्ति होती है। यह सब कुछ कुंडली में बनने वाले संतान योग पर निर्भर करता है कि आपकी संतान कब, कैसे और किस समय पर हो सकती है।

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क्या आपको सही समय पर संतान की प्राप्ति होगी अथवा संतान प्राप्ति में विलंब और समस्या होगी अथवा आपको संतान प्राप्ति की संभावनाएं ना के बराबर रहेंगी। यह सब कुछ जानने के लिए हमें कुंडली में बनने वाले संतान योग और संतान से संबंधित ग्रहों और भावों का अध्ययन करना पड़ता है तभी हम इस बारे में कुछ जान सकते हैं। तो आज इन सभी प्रश्नों का जवाब देने के लिए हम आपको इस लेख में कुंडली में बनने वाले संतान योग की जानकारी प्रदान कर रहे हैं।  

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प्रत्येक व्यक्ति, चाहे वह अमीर हो अथवा गरीब, उसका सपना होता है कि उसका अपना वंश आगे बढ़े और उसको अच्छी संतान मिले। एक ऐसी संतान की प्राप्ति हो जो उनके कुल का नाम रोशन कर सके और कुलदीपक बन सके तथा जीवन में सही कर्म करते हुए अपना और अपने परिवार माता-पिता और कुल का नाम रोशन कर सके। यही वजह है कि लोग संतान प्राप्ति के लिए अनेक प्रकार के जतन करते हैं। कुंडली में ग्रह जनित कुछ विशेष स्थितियां होती हैं, जिनके आधार पर यह पता लगाया जा सकता है कि अमुक व्यक्ति को संतान प्राप्ति को लेकर किस प्रकार के योग कुंडली में निर्मित हो रहे हैं। 

हम कई बार देखते हैं कि व्यक्ति यदि गरीब है तो भले ही उसके पास धन की कमी हो लेकिन उसके पास एक से ज्यादा संतानें होती हैं जबकि यदि कोई व्यक्ति खूब अमीर है तो उसके पास धन की कोई कमी नहीं होती है लेकिन संतान प्राप्ति के लिए उसे संघर्ष करना पड़ता है और संतान प्राप्ति की आस लंबे समय तक रखने के बाद भी कई बार संतान प्राप्ति नहीं हो पाती तो वह व्यक्ति बड़ा विचलित रहता है, इसलिए यह कहा जा सकता है कि संतान प्राप्ति होना अथवा ना होना कुंडली में उपस्थित योगों पर निर्भर करता है और ग्रह जनित बाधाएं संतान प्राप्ति में विलंब और परेशानी उत्पन्न कर सकती हैं जबकि आपकी कुंडली में ग्रहों की अच्छी स्थिति उचित समय पर अच्छी संतान प्रदान कर सकती है। 

वास्तव में संतान का सपना देखना हर किसी की ख्वाहिश होती है। किसी की यह ख्वाहिश बहुत जल्दी पूरी हो जाती है और किसी को बहुत ज्यादा प्रयास करने पर भी संतान प्राप्ति का सुखद समाचार नहीं मिल पाता है तो आखिर ऐसी कौन सी ग्रह स्थितियां हैं, जिनमें आप को संतान प्राप्त होगी अथवा विलंब से होगी अथवा संतान प्राप्त नहीं होगी। इन सभी इस स्थितियों को ज्योतिष की मदद से समझा जा सकता है क्योंकि कुंडली में संतान योग इस रहस्य से पर्दा उठा सकता है। 

भले ही हम कितने आधुनिक हो जाएं लेकिन वर्तमान समय में भी हमें अपने जीवन में संतान प्राप्ति की कामना रहती है क्योंकि किसी भी शादीशुदा संबंध की मुख्य जड़ें उसकी संतान प्राप्ति ही होती है। यही वजह है कि जब हम विवाह से पूर्व कुंडली मिलान करवाते हैं तो उसमें दोनों के मध्य संतान होने की संभावना को भी ध्यान में रखा जाता है कि विवाह के उपरांत पति-पत्नी के मध्य उत्तम संबंधों के साथ-साथ संतान प्राप्ति की कितनी संभावनाएं बन रही हैं क्योंकि अनेक बार ऐसा देखा जाता है कि विवाह होने के बाद यदि संतान प्राप्ति नहीं होती तो उसकी वजह से शादीशुदा दंपत्ति के मध्य क्लेश और तनाव बढ़ जाता है। 

हालांकि इसके विपरीत एक अन्य पक्ष यह भी है कि आज सभी लोग आधुनिकता की दौड़ में भाग रहे हैं। इस कारण पति और पत्नी, दोनों अपने करियर के प्रति ज्यादा ध्यान देते हैं और आमतौर पर 30 वर्ष की आयु के आसपास विवाह के बारे में विचार करते हैं जबकि इतनी आयु प्राप्त कर लेने के बाद स्त्री को गर्भधारण में समस्या होने की संभावना भी अधिक हो जाती है और उसकी वजह से संतान प्राप्ति गर्भधारण और संतान उत्पत्ति में भी कष्ट होने की संभावना अधिक होती है। आज के समय का असंतुलित खान-पान इन समस्याओं को और बढ़ा देता है। 

हमारी जन्मपत्रिका, जिसे हम जन्मकुंडली भी कहते हैं, हमारे जीवन का मुख्य मानचित्र अथवा आईना होती है। यह हमें हमारे भूतकाल, हमारे वर्तमान और हमें भविष्य के बारे में जानकारी प्रदान करती है। इसी से जातक के जीवन में होने वाली शुभ-अशुभ घटनाओं के बारे में जानकारी मिलती है। यही जन्मपत्रिका यह बता देती है कि किसी जातक को संतान सुख मिलेगा या नहीं मिलेगा और यदि मिलेगा भी तो किस प्रकार। अर्थात कुछ लोगों को सरलता से संतान प्राप्ति हो जाती है, कुछ को मेडिकल उपचार के बाद संतान प्राप्ति होती है, कुछ को आईवीएफ करवाना पड़ता है और कुछ को संतान के लिए केवल इंतजार करना पड़ता है। यह सभी कुछ कुंडली में विराजमान विभिन्न ग्रहों द्वारा निर्मित योगों के द्वारा संभव होता है और यह सब कुछ हमारे पूर्व जन्म के कर्मों से भी जुड़ा होता है क्योंकि ग्रह जैसी भी स्थिति का निर्माण कर रहे हैं, वह सब कुछ हमारे पूर्व जन्म के कर्मों का ही परिणाम है। 

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कुंडली में संतान योग (Kundali mein Santan Yog)

जन्म कुंडली की विवेचना से तो यह भी पता चलता है कि आपको किस प्रकार की संतान की प्राप्ति होगी क्योंकि आपके पूर्व जन्म के कर्मों के आधार पर जो संतान आपको मिलने वाली है, वह आपको सुख देगी अथवा दुख देगी, यह सब कुछ जन्मपत्रिका के आधार पर पता चलता है, इसलिए कुंडली में संतान योग देखने के लिए माता और पिता दोनों की कुंडली का अध्ययन किया जाता है और दोनों की ही कुंडली में पंचम भाव और पंचम भाव के स्वामी की स्थिति विशेष रूप से विचारणीय होती है। यदि लग्न का स्वामी पंचम भाव में हो अथवा पंचम भाव का स्वामी लग्न भाव में हो या फिर पंचम भाव का स्वामी केंद्र त्रिकोण भाव में बैठा हो तो उत्तम संतान की प्राप्ति का योग बनाता है। 

वैदिक ज्योतिष यह भी बताया जाता है कि कुंडली में पुत्र और पुत्री का सुख कब मिल सकता है और यह सुख कितना है। आपके पुत्र होगा अथवा पुत्री यह भी जाना जा सकता है लेकिन वर्तमान समय में लोगों द्वारा किए जा रहे अनेक गलत कार्यों के प्रति सचेत रहते हुए और सामाजिक धारणाओं को ध्यान में रखते हुए वर्तमान देश, काल और परिस्थिति के अनुसार हम यहां पर उन योगों के बारे में नहीं बता रहे हैं जिनसे आप पुत्र अथवा पुत्री की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। हम केवल संतान योग के बारे में चर्चा करेंगे क्योंकि हमारा यही मानना है कि जीवन में चाहे पुत्र मिले अथवा पुत्री, वह सब कुछ ईश्वर का आशीर्वाद है और वही हमारे कर्मों का परिणाम भी है, इसलिए हमें खुले दिल से अपनी संतान को स्वीकार करना चाहिए और उसका उचित मार्गदर्शन करते हुए उसका अच्छे से पालन पोषण करना चाहिए। यही हमारा उत्तरदायित्व भी है। 

यदि कुंडली के पंचम भाव का स्वामी अर्थात पंचमेश कुंडली के छठे, आठवें या बारहवें भाव में स्थित हो अथवा नीच राशिगत हो या शत्रु ग्रह की राशि में स्थित हो या फिर पंचम भाव पीड़ित अवस्था में हो और पंचम भाव का स्वामी भी पंचम भाव में पीड़ित अवस्था में हो तो संतान प्राप्ति होने की संभावना होने पर भी कष्ट पूर्वक संतान प्राप्ति होती है। 

यदि नवम भाव का स्वामी लग्न भाव में विराजमान हो लेकिन पंचम भाव का स्वामी नीच राशिगत हो और पंचम भाव में केतु अथवा बुध ग्रह विराजमान हो तो मंत्र जाप और उचित चिकित्सा द्वारा संतान की प्राप्ति होती है। 

यदि कुंडली के पंचम भाव में मिथुन राशि, कन्या राशि, मकर राशि, कुंभ राशि और मीन राशि में शनि देव विराजमान हों और बृहस्पति की दृष्टि भी पड़ रही हो या वह इनमें विराजमान हों तो ऐसे जातक को दत्तक संतान प्राप्त होने के योग बनते हैं। 

यदि कुंडली में लग्न भाव का स्वामी मंगल के साथ संबंध बना रहा हो और कुंडली के पंचम भाव का स्वामी छठे भाव में स्थित हो तो जातक को प्रथम संतान का कष्ट मिलने के योग बनते हैं। 

यदि कुंडली में गुरु बृहस्पति द्वारा अधिष्ठित राशि से पंचम भाव तथा कुंडली में लग्न से पंचम भाव, दोनों भावों में पाप ग्रह स्थित हों और संतान की क्षमता से संबंधित कोई और योग ना बन रहा हो तो ऐसे जातक को संतान शोक मिल सकता है। लग्न भाव में गुलिक के स्थित होने और लग्नेश के नीच राशि में स्थित होने पर भी ऐसा ही फल मिल सकता है। इसके अतिरिक्त कुंडली के पंचम भाव में राहु विराजमान हों, उनके साथ कोई अशुभ फल देने वाला ग्रह हो तथा देव गुरु बृहस्पति नीच राशिगत हों तो व्यक्ति को संतान शोक मिलने की संभावना रहती है।

यदि ऊपर बताई गई ग्रह स्थितियों में पंचम भाव और पंचमेश पर शुभ ग्रहों का प्रभाव हो तो काफी हद तक उपरोक्त प्रभावों में कमी आ सकती है, इसलिए ऐसे सभी दंपति, जिन्हें संतान प्राप्ति की इच्छा है और संतान प्राप्ति में परेशानी हो रही है, उन्हें किसी योग्य ज्योतिषी द्वारा अपनी दोनों की पत्रिकाओं का अवलोकन करवाना चाहिए और कुंडली में आ रही समस्याओं का समाधान जानकर उचित उपाय करने चाहिए। जहां आवश्यक हो, वहां ज्योतिषीय उपायों के साथ-साथ चिकित्सीय उपचार भी अवश्य करने चाहिए।  

वैदिक ज्योतिष में संतान प्राप्ति के लिए स्त्री और पुरुष दोनों के अंदर प्रजनन क्षमता अच्छी होना अत्यंत आवश्यक है, तभी वह संतानोत्पत्ति में सक्षम हो सकते हैं। इसके लिए पुरुष का बीज स्फुट और स्त्री का क्षेत्र स्फुट जानना आवश्यक होता है। पुरुष के लिए बीज स्फुट जानने के लिए सूर्य स्पष्ट, शुक्र स्पष्ट तथा गुरु स्पष्ट अर्थात सूर्य, शुक्र और गुरु के भोगांश को जोड़ना चाहिए। उसके बाद प्राप्त राशि यदि 12 से अधिक है तो उसको 12 से भाग देना चाहिए। इस प्रकार जो शेष राशि होगी, वह उसका बीज होगा। यदि बीज और उसका नवांश दोनों ही विषम राशियां हैं तो पुरुष में संतान उत्पत्ति की पूर्ण क्षमता मानी जाती है। यदि कोई एक सम है और दूसरा विषम है तो मध्यम क्षमता माननी चाहिए लेकिन यदि दोनों ही सम हैं तो संतानोत्पत्ति में अक्षमता समझनी चाहिए।  

पुरुष का बीज स्फुट जानने के बाद स्त्री का क्षेत्र स्फुट जाना चाहिए। इसके लिए स्त्री की कुंडली में चंद्र स्पष्ट, मंगल स्पष्ट और गुरु स्पष्ट को आधार मानकर उपरोक्त तरीके से गणना करनी चाहिए। यदि शेष राशि अर्थात क्षेत्र स्फुट दोनों ही सम राशि हो तो संतानोत्पत्ति की पूर्ण क्षमता मानी जाती है। यदि कोई एक सम और दूसरा विषम हो तो मध्यम क्षमता होती है तथा दोनों ही विषम हो तो संतानोत्पत्ति में अक्षमता समझना चाहिए। 

यदि पुरुष का बीज स्फुट और स्त्री का क्षेत्र स्फुट संतानोत्पत्ति में अक्षमता जाहिर करता है और उन राशियों पर पाप ग्रहों का प्रभाव भी है तो उपाय करने के बाद भी संतान होने की संभावना लगभग नगण्य होती है। ऐसी स्थिति में केवल ईश्वर भक्ति और उनकी कृपा ही संतान प्रदान कर सकती है। इसके विपरीत यदि बीज और क्षेत्र से अक्षमता जाहिर होती है लेकिन उन पर शुभ ग्रहों का प्रभाव है तो ग्रहों की शांति का उपाय करना चाहिए और औषधि से उपचार करवाना चाहिए। इससे संतान होने की संभावना बढ़ जाती है। 

इसके अतिरिक्त पुरुष की कुंडली में शुक्र पुरुष के वीर्य का और स्त्री की कुंडली में मंगल उसके रज का कारक होता है। इन दोनों की स्थिति अनुकूल होने पर संतान प्राप्ति की संभावना अच्छी होती है। यदि इन दोनों में से स्त्री या पुरुष किसी एक अथवा दोनों में कोई समस्या हो तो चिकित्सीय परामर्श भी लेना चाहिए।

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कुंडली में संतान प्राप्ति के मुख्य घटक

कुंडली में बनने वाले संतान योग की पूरी जानकारी के लिए हमें संतान प्राप्ति के कुछ मुख्य घटकों के बारे में जानना आवश्यक है, जो कि निम्नलिखित हैं: 

पंचम भाव और भावेश की स्थिति

कुंडली का पंचम भाव संतान के बारे में बताता है अर्थात पंचम भाव से हम यह जान सकते हैं कि हमारे जीवन में संतान प्राप्ति को लेकर किस प्रकार की स्थिति निर्मित हो रही है। पंचम भाव हमारे पूर्व पुण्य का भाव भी होता है अर्थात पूर्व जन्म में किए गए शुभ कर्मों के द्वारा ही हमें संतान की प्राप्ति होती है। यदि हमने शुभ कर्म किए हैं तो हमें शुभ और अच्छी संतान की प्राप्ति होगी और यदि हमने अशुभ कर्म किए हैं तो हमारी संतान हमें कष्ट देने वाली हो सकती है, इसलिए मनुष्य को सदैव अच्छे कर्म करने की सलाह दी जाती है ताकि उनको प्राप्त होने वाली संतान भी अच्छी हो और यदि उनके कर्म खराब होंगे तो ऐसी संतान मिलेगी, जो उन्हें जीवन में कष्ट देंगी या फिर संतान प्राप्ति के लिए संघर्ष करना होगा।

कुंडली में पंचम भाव और भावेश अर्थात पंचम भाव के स्वामी की स्थिति बहुत महत्वपूर्ण होती है क्योंकि यही हमें संतान प्राप्ति के बारे में सूचित करती है। यदि कुंडली का पंचम भाव शुभ स्थिति में है अर्थात पंचम भाव पर किसी भी पाप ग्रह का प्रभाव नहीं है, वहां पर किसी शुभ ग्रह का प्रभाव है यानी कि कोई शुभ ग्रह पंचम भाव में विराजमान है या पंचम भाव को अपनी दृष्टि से देख रहा है तो यह स्थिति पंचम भाव को मजबूत बनाती है और संतान प्राप्ति के अच्छे योग बनाती है। इसके साथ ही यदि पंचम भाव का स्वामी भी मजबूत अवस्था में हो, शुभ ग्रहों के साथ हो अथवा शुभ ग्रहों द्वारा देखा जाता हो या उनसे किसी भी तरह का संबंध बनाता हो तो वह मजबूत स्थिति में माना जाता है और अशुभ ग्रहों से मुक्त हो तो वह प्रबल हो जाता है।  ऐसी स्थिति में कुंडली में अच्छी संतान प्राप्ति के योग निर्मित होते हैं। 

इसके विपरीत, यदि कुंडली का पंचम भाव कमजोर है, उसमें पाप ग्रह विराजमान है या पाप ग्रह से संबंध बन रहा है तो वह पंचम भाव को कमजोर कर देते हैं और पंचम भाव का स्वामी भी यदि अस्त है, नीच राशि अथवा पाप ग्रह के संबंध में है और पीड़ित है तो ऐसा होना संतान प्राप्ति में विलंब या संतान प्राप्ति के योग को नष्ट कर देता है। यदि किसी प्रकार कुंडली के अन्य योगों द्वारा संतान प्राप्ति की संभावना बन भी रही होती है तो उस जातक को संतान प्राप्ति के लिए कठिन संघर्ष करना पड़ता है और संतान भी आगे जाकर कष्ट देने वाली हो जाती है, इसलिए संतान योग देखने के लिए सर्वप्रथम कुंडली के पंचम भाव और पंचम भाव के स्वामी की स्थिति का अवलोकन किया जाता है। 

संतान के मुख्य कारक ग्रह बृहस्पति की स्थिति

वैदिक ज्योतिष के अंतर्गत किसी भी कुंडली में नवग्रह का विशेष स्थान होता है और हर ग्रह किसी न किसी चीज का कारक होता है। उसी प्रकार संतान का कारक ग्रह देव गुरु बृहस्पति को माना जाता है। यदि कुंडली में देव गुरु बृहस्पति मजबूत और प्रबल स्थिति में विराजमान हैं तो जातक को अच्छी संतान प्राप्त करने में मदद करते हैं। इसके विपरीत, बृहस्पति की अशुभ स्थिति और उनका कुंडली में कमजोर होना संतान प्राप्ति में बाधा दिलाने वाला होता है। 

इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि किसी भी जातक को कुंडली में उत्तम संतान की प्राप्ति के लिए देव गुरु बृहस्पति की कृपा का प्राप्त होना अत्यंत आवश्यक है। इसके अभाव में व्यक्ति को संतान प्राप्ति में विलंब अथवा कष्ट का सामना करना पड़ सकता है और संतान होने में भी समस्या हो सकती है। यदि देव गुरु बृहस्पति की कृपा आपके ऊपर है तो आपको उत्तम संतान की प्राप्ति होगी और यदि देव गुरु बृहस्पति कुंडली में पंचम भाव अथवा भावेश से संबंध बना रहे हैं और वह शुभ स्थिति में हैं तो एक अच्छी संतान की प्राप्ति होने की संभावना बढ़ जाती है। 

अनुकूल ग्रह दशा की प्राप्ति

जैसा कि हम जानते हैं कि कुंडली में कोई भी घटना घटित होने के लिए ग्रह दशा का विशेष महत्व होता है। ठीक उसी प्रकार कुंडली में संतान प्राप्ति के लिए अनुकूल ग्रह की दशा प्राप्त होना भी अत्यंत आवश्यक है। उसके अभाव में संतान प्राप्ति में विलंब होता है। कुंडली में जब संतान प्राप्ति कारक ग्रह बृहस्पति की दशा आती है अथवा कुंडली के पंचम भाव के स्वामी की दशा प्राप्त होती है या उन ग्रहों की दशा प्राप्त होती है, जो पंचम भाव से संबंध बना रहे हों और शुभ ग्रह हों तो जातक को संतान प्राप्ति के योग बन जाते हैं। इसके विपरीत, यदि किसी ऐसे ग्रह की दशा चल रही है जो पंचम भाव पर अशुभ प्रभाव दे रहा है या पंचम भाव से संबंधित नहीं है तो उस दशा में जातक को संतान प्राप्ति के लिए प्रतीक्षा करनी पड़ती है। इस प्रकार कुंडली में ग्रह दशा का विशेष महत्व है क्योंकि अनुकूल ग्रह दशा समय पर मिलने से ही जातक को सही समय पर संतान की प्राप्ति हो पाती है और कुंडली में संतान योग फलित होता है।  

अनुकूल गोचर की प्राप्ति

वैदिक ज्योतिष में ग्रहों के गोचर को भी अत्यंत महत्व दिया जाता है क्योंकि जिस प्रकार कुंडली में किसी भी घटना के घटित होने में दशा की भूमिका होती है, उसी प्रकार अनुकूल गोचर भी आवश्यक है। मान लीजिए कि कुंडली में पंचम भाव के स्वामी की दशा चल रही है और वह अनुकूल स्थिति में है तो वह अपनी दशा में संतान प्राप्ति के योग बनाएगा और जातक के जीवन में संतान प्राप्ति के समाचार आने का समय हो सकता है लेकिन यदि उसी समय पर अशुभ गोचर चल रहा होगा तो वह इस समाचार को परेशानियों में बदल सकता है। यानी कि यदि कोई स्त्री अनुकूल दशा में गर्भवती हो गई है और गोचर अनुकूल नहीं है और अशुभ ग्रह प्रभाव डाल रहे हैं तो जातक को गर्भपात का सामना भी करना पड़ सकता है। इसके विपरीत, यदि अनुकूल दशा में अनुकूल गोचर प्राप्त हो रहा है तो जातक को बड़ी आसानी से एक अच्छी संतान प्राप्त हो जाती है और उसके कष्टों में भी कमी आती है।

यदि कुंडली में पंचम भाव के ऊपर पंचम मेष का गोचर हो रहा है तो संतान सुख की प्राप्ति का समय होता है। यदि देव गुरु बृहस्पति अपने गोचर काल में पंचम भाव, एकादश भाव, नवम भाव या लग्न भाव में प्रवेश करें तो भी संतान होने के शुभ समाचार मिलने की उम्मीद की जा सकती है। इसके अतिरिक्त जब गोचर काल में लग्न भाव का स्वामी, पंचम भाव का स्वामी तथा सप्तम भाव का स्वामी एक साथ ही युति कर रहे हों अर्थात एक ही राशि में गोचर करें तो भी संतान सुख प्राप्ति की संभावना बढ़ जाती है। 

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कुंडली में संतान सुख प्राप्ति से सम्बंधित कुछ विशेष बिंदु

जन्म कुंडली में संतान योग को लेकर कुछ विशेष बातें निम्नलिखित हैं:

  • जन्म कुंडली का पंचमेश अर्थात पंचम भाव का स्वामी अपनी उच्च राशि, स्वराशि, मूल त्रिकोण राशि अथवा मित्र राशि में हो कर यदि जन्म कुंडली के लग्न भाव, पंचम भाव, सप्तम भाव या नवम भाव में स्थित हो और अशुभ ग्रहों से युक्त ना हो तो उत्तम संतान सुख मिलता है। 
  • जन्म कुंडली में बृहस्पति उत्तम स्थिति में हो और कुंडली का पंचमेश भी मजबूत अवस्था में हो तथा ये दोनों एक दूसरे को देखते हों या एक दूसरे से अच्छे संबंध बनाएं तो संतान सुख की प्राप्ति होती है। 
  • यदि कुंडली के पंचम भाव में शुभ ग्रह विराजमान हो अथवा पंचम भाव का स्वामी वर्गोत्तम हो या पंचम भाव में ही विराजमान हो अथवा पूर्ण दृष्टि से पंचम भाव को देखता हो तो संतान सुख मिलता है। 
  • यदि स्वराशि के बृहस्पति अथवा शुभ अंशों के बृहस्पति नवम भाव में बैठकर पंचम भाव को दृष्टि देते हो और पंचम भाव का स्वामी अच्छी अवस्था में हो तो संतान सुख की प्राप्ति की संभावना अधिक होती है। 
  • यदि कुंडली का लग्न और पंचम भाव गुरु और शुक्र के वर्गों में स्थित हो और शुक्र और चंद्रमा से युक्त हो तो अच्छी संतान का सुख मिलता है।
  • यदि कुंडली में पंचम भाव पीड़ित अवस्था में हो अथवा श्रापित दोष से युक्त हो या फिर पितृदोष से युक्त हो तो संतान प्राप्ति में बाधा होती है। 
  • यदि पंचम भाव में सूर्य देव वृषभ राशि, सिंह राशि, कन्या राशि और वृश्चिक राशि में स्थित हों तथा कुंडली के अष्टम भाव में शनि देव विराजमान हों और लग्न में मंगल विराजित हो तो संतान सुख में विलंब हो सकता है। 
  • यदि पंचम भाव पर मंगल की दृष्टि हो अथवा राहु का प्रभाव हो तो संतान सुख में विलंब और कष्ट हो सकता है।
  • यदि कुंडली के सप्तम भाव में लग्न भाव का स्वामी और नवम भाव का स्वामी युति करें तो संतान सुख की प्राप्ति होती है। 
  • यदि कुंडली के एकादश भाव में बुध, शुक्र अथवा बली चंद्रमा शुभ स्थिति में हो और वह पंचम भाव को पूर्ण दृष्टि से देखें तो उत्तम संतान सुख होता है। 
  • यदि कुंडली के पंचम भाव में केतु विराजमान हो तो भी संतान सुख मिल सकता है। 
  • यदि कुंडली के नवम भाव में बृहस्पति अथवा शुक्र ग्रह पंचमेश के साथ विराजमान हों तो अच्छी संतान मिलती है। 
  • उपरोक्त ग्रहों की स्थिति के अतिरिक्त कुंडली में अच्छा शुक्र गर्भधारण में मदद करता है तो वहीं शिशु के स्वास्थ्य की रक्षा का धर्म देव गुरु बृहस्पति निभाते हैं और इसलिए देव गुरु बृहस्पति का लग्न अथवा भाग्य स्थान में बैठना अत्यंत शुभ परिणाम प्रदान करता है। 
  • बृहस्पति के अतिरिक्त यदि शुक्र ग्रह भी पंचम भाव में विराजमान हो या पंचम भाव से संबंध बना रहे हों तो उनकी दशा भी संतान प्राप्ति में उत्तम परिणाम प्रदान करती है। 
  • यदि जातक की कुंडली में पंचम भाव पर मंगल अथवा राहु की दृष्टि पड़ रही हो तो यह दृष्टि संतान को हानि पहुंचाने वाली मानी जाती है और उन ग्रहों की दशा आने पर संतान को समस्या होने की स्थिति बनती है। 

कुंडली में संतान योग उदाहरण कुंडली

नीचे एक कुंडली दी जा रही है, जिसके माध्यम से आपको कुंडली में संतान योग के बारे में समझाया जा रहा है:

उपरोक्त कुंडली एक जातिका की है, जिसका जन्म 4 फरवरी 1987 को हुआ है। इस कुंडली में पंचम भाव के स्वामी शुक्र महाराज हैं जो कि कुंडली के सप्तम भाव में विराजमान हैं। कुंडली के पंचम भाव के ऊपर मंगल और चंद्रमा की पूर्ण दृष्टियां हैं। यहां मंगल कष्टकारी ग्रह है जो कि संतान प्राप्ति में बाधा देते हैं जबकि चंद्रमा शुभ दृष्टि कारक हैं। इस जातिका को सर्वप्रथम संतान प्राप्ति में कष्ट का सामना करना पड़ा और मंगल की दृष्टि पंचम भाव पर होने के कारण पहली संतान का कष्ट भोगना पड़ा। उसके उपरांत जनवरी 2017 में इनको कन्या संतान की प्राप्ति हुई। उस समय उनकी कुंडली में चंद्रमा की महादशा में शुक्र की अंतर्दशा चल रही थी। आप देख सकते हैं कि चंद्रमा पंचम भाव को प्रभावित कर रहा है और शुक्र पंचम भाव का स्वामी है।  

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कुंडली में संतान योग में बाधा बनने वाले कुछ विचारणीय बिंदु

जिस प्रकार कुछ विशेष योग कुंडली में संतान सुख की प्राप्ति करवाते हैं तो कुछ ऐसे योग भी होते हैं जो संतान प्राप्ति में बाधा उत्पन्न करते हैं। ऐसे ही कुछ योग निम्नलिखित हैं:

  • यदि पंचम भाव का स्वामी अष्टम भाव में नीच राशिगत हो और पंचम भाव पर पाप ग्रहों का ज्यादा प्रभाव हो तो संतान प्राप्ति में समस्या आती है। 
  • यदि पंचम भाव और छठे भाव के स्वामियों के मध्य राशि परिवर्तन हो तो कई बार गर्भपात की संभावना हो सकती है। 
  • पंचम भाव पर राहु और शनि की संयुक्त दृष्टि होने से संतान सुख की कमी होती है या फिर मृत संतान हो सकती है। 
  • पंचम भाव में सूर्य का प्रभाव होना या सूर्य का स्थित होना संतान सुख में कमी करता है। हालांकि सूर्य ग्रह के उपाय करने के बाद एक संतान की प्राप्ति संभव हो सकती है। 
  • यदि पंचम भाव में शनि और राहु एक साथ विराजमान हों तो श्रापित दोष का निर्माण होता है, जो पूर्व जन्म के कर्मों के कारण संतानहीनता देता है। 
  • यदि कुंडली के पंचम भाव में शनि और मंगल विराजमान हों तो संतान प्राप्ति में बाधा होती है। 
  • यदि कुंडली के लग्न भाव, पंचम भाव व सप्तम भाव से सूर्य, बुध और शनि का संबंध हो तो संतान बाधा उत्पन्न होती है। 
  • यदि मंगल की दृष्टि पंचम भाव पर हो तो संतान की हानि या फिर कष्ट पूर्ण संतान मिलती है। अधिकांश स्थिति में ऑपरेशन के बाद ही संतान का जन्म होता है। यदि मंगल उस कुंडली के लिए शुभ है तो संतान प्राप्ति हो जाती है, अन्यथा संतान होने में समस्या आती है। 
  • यदि कुंडली के द्वादश भाव में पंचम भाव का स्वामी और देव गुरु बृहस्पति युति कर रहे हों तथा कुंडली के अष्टम भाव का स्वामी और मंगल पंचम भाव में विराजमान हो तो संतान सुख की कमी होती है। 
  • यदि कुंडली के पंचम भाव पर राहु और मंगल का संयुक्त प्रभाव हो तो सर्प दोष बन जाता है और संतान होने में बाधा उत्पन्न होती है। 
  • यदि पंचम भाव का संबंध सूर्य और शनि से हो जाए अथवा राहु या केतु से दृष्टि संबंध हो तो संतान प्राप्ति में बाधा आ जाती है। 
  • यदि अष्टकवर्ग पद्धति में बृहस्पति के अष्टक वर्ग में बृहस्पति से पंचम भाव शुभ बिंदुओं से रहित हो तो संतान होने में बाधा उत्पन्न होती है और संतान सुख की कमी होती है। 
  • यदि कुंडली में शुक्र ग्रह, बुध, शनि या राहु के साथ स्थित हो और पंचम भाव तथा सप्तम भाव में अशुभ ग्रहों का प्रभाव अधिक हो तो शुक्र की पीड़ित अवस्था से वीर्य दोष उत्पन्न हो जाता है और पुरुष संतानोत्पत्ति में सक्षम नहीं हो पाता है। 
  • यदि कुंडली के सप्तम भाव का स्वामी पीड़ित अवस्था में हो और कमजोर हो तथा पंचम भाव में विराजमान हो तो भी संतान सुख में कमी हो सकती है। 
  • कारकोभावनाशाय सिद्धांत के अनुसार यदि संतान कारक बृहस्पति पंचम भाव में ही स्थित हों और उन पर अशुभ ग्रहों का अधिक प्रभाव हो तो भी संतान प्राप्ति में बाधा उत्पन्न होती है। 
  • यदि कुंडली का लग्नेश, पंचमेश, सप्तमेश और देव गुरु बृहस्पति, ये सभी ग्रह कमजोर और बल हीन अवस्था में हों तो संतान सुख में कमी करते हैं। 
  • कुंडली के लग्न भाव और चंद्रमा से पंचम भाव तथा बृहस्पति से भी पंचम भाव यदि पीड़ित अवस्था में हों या पाप कर्तरी में हों तो संतान बाधा आती है। 
  • यदि वृषभ, सिंह, कन्या अथवा वृश्चिक राशियों में से कोई राशि पंचम भाव में हो और कोई अशुभ योग बन रहा हो तो संतान प्राप्ति में विलंब होता है या समस्या आती है क्योंकि ये अल्पसुत राशियां कहलाती हैं। 
  • यदि कुंडली के लग्न भाव, चंद्र राशि और गुरु अधिष्ठित राशि से पंचम भाव पर पाप ग्रहों का अधिक प्रभाव होने पर भी संतानहीनता हो सकती है।   

आचार्य मृगांक शर्मा से फोन/चैट पर जुड़ें

कुंडली में संतान योग को मजबूत बनाने के उपाय

यदि आपकी कुंडली में संतान योग कमजोर है या आपको संतान प्राप्ति में समस्या आ रही है तो आपको कुछ विशेष उपाय करने चाहिए, जिससे आप के जीवन में संतान की वृद्धि हो और आप संतान प्राप्त कर पाने में भी सफल हो जाएं। ऐसे कुछ उपाय निम्नलिखित हैं: 

  • कुंडली के पंचम भाव के स्वामी को मजबूत बनाने का प्रयास करना चाहिए। 
  • कुंडली में बृहस्पति की स्थिति को देखकर उनसे संबंधित उपाय करने चाहिए ताकि देव गुरु बृहस्पति की कृपा प्राप्त हो सके और संतान प्राप्ति का सुखद समाचार मिले। 
  • संतान की कामना रखने वाले दंपत्ति को अपने कमरे में बाल कृष्ण की तस्वीर या चित्र लगाने चाहिए ताकि ज्यादा से ज्यादा समय आपका ध्यान उन पर रहे और प्रतिदिन उन्हें मक्खन मिश्री का भोग लगाकर स्वयं उसे प्रसाद स्वरूप ग्रहण करना चाहिए। 
  • संतान की कामना रखने वाले पति – पत्नी को प्रतिदिन संतान गोपाल मंत्र का निश्चित संख्या में जप करना चाहिए। 
  • यदि आप चाहें तो आप संतान गोपाल मंत्र ”ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः” का संपूर्ण अनुष्ठान भी संपन्न करा सकते हैं। 
  • पूर्णमासी का व्रत रखने से भी ईश्वर कृपा से संतान प्राप्ति की संभावना बनती है।  
  • देव गुरु बृहस्पति संतान के मुख्य कारक होने के कारण यदि कुंडली में शुभ बृहस्पति हैं तो उनसे संबंधित रत्न धारण करना या उनका मंत्र जाप करना भी संतान प्राप्ति में सहायक होता है। यदि कुंडली के लिए बृहस्पति अशुभ हैं तो ऐसी स्थिति में गुरु पूजन शुभ फलदायी हो जाता है। 
  • संतान प्राप्ति के लिए आपको बृहस्पतिवार के दिन किसी मंदिर, विद्यालय अथवा बगीचे में केले के वृक्ष को लगाना चाहिए और नियमित रूप से उसकी पूजा करनी चाहिए।
  • इसके अतिरिक्त पीपल वृक्ष को लगाना भी वंश वृद्धि का कारण बनता है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि जो व्यक्ति पीपल वृक्ष को लगाता है और उस को पालता है, उसके वंश का कभी नाश नहीं होता है।  
  • यदि कुंडली में पितृदोष का निर्माण हो रहा हो, जिसकी वजह से संतान बाधा आ रही है तो पितृदोष की शांति के लिए गया में पितृ तर्पण कराएं अथवा पितृ गायत्री मंत्र का जाप कराएं अथवा प्रतिदिन अपने घर में हरिवंश पुराण का पाठ करें या करवाएं। 
  • आपके लिए संतान की कामना से प्रदोष व्रत करना भी लाभदायक रहेगा। आपको कम से कम 11 प्रदोष व्रत रखने चाहिए तथा भगवान शिव का गाय के दूध से रुद्राभिषेक संतान प्राप्ति के उद्देश्य से करना चाहिए। 
  • प्रत्येक अमावस्या के दिन पितरों का तर्पण करें और चावल की खीर बनाकर पितरों के निमित्त मंदिर में लेकर जाएं। 
  • इसके अतिरिक्त पीपल के वृक्ष के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाएं तथा कौवे, चींटी आदि को दाना डालें।
  • यदि कुंडली में कोई विशेष ग्रह संतान प्राप्ति में बाधा बन रहा है तो उसके लिए भी कुछ विशेष उपाय किए जाने चाहिए। 
  • यदि कुंडली में सूर्य के कारण संतान बाधा हो रही है तो पितृदोष की शांति कराएं या पितृ गायत्री का जाप कराएं। अपने घर में हरिवंश पुराण का पाठ कर सकते हैं। साथ ही सूर्य के बीज मंत्र का जाप करवाकर सूर्य की शांति कराएं। सूर्य की पीड़ा पितरों की पीड़ा या उनका श्राप हो सकती है। रविवार के दिन बेल, लाल चंदन, लाल पुष्प और गुड़ तथा तांबे का दान करना चाहिए। यदि सूर्य उस कुंडली के लिए शुभ ग्रह है तो माणिक्य रत्न अथवा एक मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। 
  • यदि चंद्रमा संतान प्राप्ति में बाधा बन रहे हैं तो रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग जाकर दर्शन करने चाहिए अथवा गायत्री मंत्र का जाप करना चाहिए। चंद्रमा की पीड़ा माता के श्राप या मां दुर्गा के कुपित हो जाने के कारण हो सकती है। इसको दूर करने के लिए चंद्रमा के बीज मंत्र का जाप कराएं। चंद्रमा की शांति कराएं। सोमवार का व्रत रखें और सोमवार के दिन सफेद वस्त्र, दूध, दही, चांदी, आदि का दान करें। यदि चंद्रमा उस कुंडली के लिए शुभ ग्रह हैं तो मोती रत्न अथवा दो मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। 
  • यदि मंगल ग्रह के कारण संतान प्राप्ति में बाधा आती है तो मंगल ग्रह की शांति कराएं और मंगल के बीज मंत्र का जाप कराएं। मंगल ग्रह की बाधा भाई के श्राप के कारण हो सकती है। इसके अतिरिक्त मंगलवार के दिन लाल फूल, गुड़, शक्कर, लाल वस्त्र, तांबे के बर्तन, सिंदूर, लाल चंदन या मसूर की दाल का दान करना चाहिए। यदि मंगल ग्रह उस कुंडली के लिए शुभ हैं तो मूंगा रत्न अथवा तीन मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। 
  • यदि कुंडली में बुध ग्रह की पीड़ा संतान प्राप्ति में बाधा बन रही है तो इसे दूर करने के लिए बुध ग्रह के बीज मंत्र का जाप करना अथवा विष्णु पुराण का विष्णु सहस्त्रनाम स्त्रोत का पाठ करना चाहिए। बुध ग्रह की पीड़ा मौसी, बुआ अथवा मामा के श्राप के कारण हो सकती है। बुधवार के दिन कपूर, काँसे का बर्तन, साबुत मूंग, खांड, हरे रंग के वस्त्र और फल का दान करना चाहिए तथा तुलसी के पौधे के नीचे संध्या समय में दीपक जलाना चाहिए। यदि बुध ग्रह कुंडली के लिए शुभ हैं तो पन्ना रत्न अथवा चार मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।  
  • यदि संतान कारक होकर भी कुंडली में देव गुरु बृहस्पति कमजोर अवस्था में हैं या उनकी वजह से भी संतान योग में बाधा उत्पन्न हो रही है तो इसे ब्राह्मण का श्राप या गुरु का श्राप माना जा सकता है। इसको दूर करने के लिए बृहस्पति के बीज मंत्र का जाप करना चाहिए। बृहस्पतिवार के दिन पीपल और केले के वृक्ष को जल चढ़ाना चाहिए तथा देसी घी, हल्दी, बेसन या चने की दाल, पीले रंगों के वस्त्र और स्वर्ण का दान करना चाहिए। किसी विद्वान ब्राह्मण अथवा विद्यार्थी की मदद करनी चाहिए। यदि बृहस्पति उस कुंडली के लिए शुभ हैं तो पुखराज रत्न अथवा पांच मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। 
  • यदि कुंडली में शुक्र ग्रह संतान प्राप्ति में बाधक है तो शुक्र ग्रह के बीज मंत्र का जाप करना चाहिए। शुक्रवार के दिन महिला साध्वी या महिला पुजारी को श्रृंगार की सामग्री भेंट करनी चाहिए। शुक्र ग्रह की पीड़ा स्त्री श्राप या कुलदेवी के श्राप के कारण हो सकती है। शुक्रवार को ही आटा, चावल, दही, मिश्री, सफेद चंदन, इत्र और सफ़ेद वस्त्रों का दान करना चाहिए। यदि शुक्र कुंडली के लिए योग कारक ग्रह है अथवा शुभ ग्रह है तो आपको हीरा अथवा हीरे की अनुपलब्धता होने पर ओपल रत्न धारण करना चाहिए। इसके अतिरिक्त आप छह मुखी रुद्राक्ष धारण कर सकते हैं।  
  • यदि कुंडली में शनि ग्रह संतान प्राप्ति में बाधक हैं तो पीपल का पेड़ लगाना चाहिए और शनि ग्रह के बीज मंत्र का जाप करवाकर शनि ग्रह की शांति करानी चाहिए। इसके अतिरिक्त शनिवार के दिन नीले पुष्प, काले तिल, साबुत उड़द, सरसों का तेल, चमड़े के जूते, कंबल, काले रंग के वस्त्र, आदि का दान करना चाहिए। यदि उस कुंडली के लिए शनि ग्रह योग कारक अथवा शुभ ग्रह हैं तो नीलम रत्न धारण करना चाहिए। नीलम की अनुपलब्धता होने पर ऐमेथिस्ट अर्थात कटैला या फिर सात मुखी रुद्राक्ष धारण कर सकते हैं। 
  • यदि राहु ग्रह के कारण संतान प्राप्ति में बाधा आ रही है तो शनिवार के दिन काले उड़द, तिल, लोहा, सतनजा, नारियल, आदि का दान करें। इसके साथ ही आप नीले वस्त्र या फिर रांगे की गोली का भी दान कर सकते हैं। मछलियों को चारा भी डाला जा सकता है। राहु ग्रह की शांति कराएं। राहु के कारण सर्प दोष बन सकता है या सर्प श्राप भी हो सकता है, इसलिए नाग पंचमी के दिन सर्पों की पूजा करें और अमावस्या अथवा सोमवार के दिन शिवलिंग पर चांदी का नाग नागिन का जोड़ा चढ़ाएं। यदि राहु उस कुंडली में शुभ परिणाम देने वाला ग्रह है तो राहु के शुभ प्रभाव को बढ़ाने के लिए गोमेद रत्न अथवा आठ मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। 
  • यदि केतु ग्रह संतान प्राप्ति में बाधा बन रहा है तो उसकी शांति के लिए केतु के बीज मंत्र का जाप करें अथवा करवाएं तथा ब्राह्मणों को आदर पूर्वक भोजन कराएं और सतनजा व नारियल का दान करें। यदि केतु उस कुंडली में शुभ परिणाम देने में सक्षम है तो लहसुनिया या नौ मुखी रुद्राक्ष धारण किया जा सकता है।
  • इसके अतिरिक्त किसी विद्वान ज्योतिषी को अपनी कुंडली दिखाकर उनके द्वारा बताए गए उपाय करने से भी आप अपने जीवन में संतान योग को मजबूत बना सकते हैं। 

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कुंडली में संतान योग के बारे में जानने के लिए केवल जन्म लग्न ही नहीं, चंद्र लग्न और सूर्य लग्न से पंचम भाव का विचार भी करना चाहिए तथा संतान के कारक ग्रह बृहस्पति से भी पंचम भाव का अवलोकन संतान सुख के बारे में जानकारी प्रदान करता है।जन्म कुंड ली के अतिरिक्त नवमांश कुंडली और विशेष रूप से सप्तमांश कुंडली का अध्ययन किया जाता है क्योंकि यही संतान सुख के बारे में जानकारी प्रदान करती है। पति और पत्नी दोनों की ही कुंडली में इन सभी बातों का अवलोकन किया जाना अनिवार्य है। पंचम भाव के अतिरिक्त प्रथम संतान पंचम भाव से, द्वितीय संतान के लिए उससे तीसरा भाव अर्थात सप्तम भाव, तीसरी संतान के लिए नवम भाव और इसी प्रकार आगे की संतान का विचार किया जा सकता है। 

हम आपको यही सलाह देते हैं कि आपको किसी विद्वान ज्योतिषी से अपनी जन्म पत्रिका का अवलोकन करवाना चाहिए क्योंकि वही बता सकते हैं कि आपकी कुंडली में किन ग्रहों और किन वजहों से या किन पाप कर्मों के कारण संतान प्राप्ति में बाधा आ रही है और बाधा कारक ग्रहों का जाप, दान, हवन, पूजन, आदि शुभ कृत्यों द्वारा संतान प्राप्ति का प्रयास किया जा सकता है। आप सभी जानते हैं कि महाराज दशरथ ने पुत्र कामेष्टि यज्ञ संपन्न कराया था जिसके परिणामस्वरूप ही उन्हें श्री राम, श्री लक्ष्मण, श्री भरत और श्री शत्रुघ्न जैसे चार सुकुमार पुत्रों का पिता बनने का सुख मिला था। 

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